आज हम कम्प्यूटर्स का इस्तेमाल हर काम के लिए करते हैं – अपना घरकाम करने से लेकर दोस्तों से जुड़े रहने तक. लेकिन आप 50 साल पीछे जाते हैं, तो देखते हैं कि तब ऐसा नहीं होता था. विश्व इतिहास में अपेक्षाकृत एक नए आविष्कार के रूप में कम्प्यूटर जैसा आप इन दिनों जानते हैं वैसा नहीं था, बल्कि वह तो कड़ी मेहनत, अध्ययन, अनुसंधान और एक ऐसे सपने के परिणामस्वरूप सामने आया, जिसके तहत एक ऐसी मशीन का आविष्कार किया जा रहा था जो हर असंभव काम कर सके.
मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी बग़दाद के बैतुल हिकमत यानी बुद्धिमानों की सभा (हाउस ऑफ़ विसडम) के एक फ़ारसी गणितज्ञ, खगोलविद, ज्योतिषि, भूगोलवेत्ता विद्वान हुआ करते थे. ख़्वारिज़्मी ने गणित में अल्गोरिद्म की परिकल्पना विकसित की. इसीलिए उन्हें कम्प्यूटर विज्ञान का पितामह कहा जाता है.आज हम जब किसी सॉफ़्टवेयर में कोई प्रोग्राम डालते हैं, तो निर्देशों के उस अनुक्रम का उपयोग करते हैं, जिसे अल्गोरिद्म कहते हैं. बिना अल्गोरिद्म के आधुनिक कम्प्यूटर का वजूद ही नहीं होता. गूगल की किसी भी जानकारी की खोज करने की क्षमता से लेकर कम्प्यूटर बंद करने यानी शट डाउन करने जैसी सरल प्रक्रिया तक उस सिद्धांत पर आधारित है, जो आज से 1200 साल पहले अल-ख़्वारिज्मी ने लिखा था. कितनी अनोखी बात है न यह!
चार्ल्स बैबेज का जन्म 1791 में लंदन के एक अमीर परिवार में हुआ था. सामान्य प्रोग्रामेबल कम्प्यूटर की परिकल्पना के पीछे चार्ल्स का ही दिमाग था. दो अलग-अलग कम्प्यूटर बनाने के लिए उन्होंने अपना सारा जीवन लगा दिया.पहला था, डिफ़रेंस इंजिन जो 1830 के दशक में आंशिक रूप से तैयार हुआ. उनकी दूसरी परिकल्पना काफ़ी जटिल थी, जो कि कभी पूरी नहीं हो सकी. हालाँकि दोनों में एक शक्तिशाली गणना टूल साबित होने की पूरी सामर्थ्य थी. इसके अलावा ये दोनों अपने समय में परिकल्पना और अभ्यास के मामले में क्रांतिकारी हुआ करते थे.
उनकी मशीनें ही सही मायनों में दुनिया के पहले कम्प्यूटर थीं.
ऐलन ट्यूरिंग द्वितीय विश्व युद्ध के नायक हुआ करते थे. उन्होंने अपने दल के साथ ब्लेचली पार्क में एक गणना मशीन का आविष्कार किया, जिसका नाम था बॉम. इसका उद्देश्य था नाज़ियों की एनिग्मा मशीन के कूट संदेशों को डीकोड करना, समझना था. अगर ऐलन ट्यूरिंग नहीं होते, तो यह युद्ध और आठ बरस तक चल सकता था.हालाँकि उन्होंने कई योगदान किए हैं, लेकिन उनके अन्य योगदानों में एक यह भी है कि उनके अध्ययनों के कारण कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए रास्ता तैयार हुआ. शुरुआती कम्प्यूटर्स में प्रोग्राम उनकी मेमरी में नहीं रखा जाता था. किसी नए काम में इस्तेमाल करने से पहले इन कम्प्यूटर्स में कुछ ज़रूरी संशोधन करने पड़ते थे, मशीन के तार बदलने पड़ते थे और केबल को हाथ से री-रूटिंग करना पड़ता था और स्विच बदलने पड़ते थे. आज से लगभग 7 दशक पहले ऐलन ट्यूरिंग ने पहला ऐसा कम्प्यूटर बनाया जो प्रोग्राम स्टोर कर सकता था. यह आज के कम्प्यूटर के लिए एक बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान था4. माउस का आविष्कार करने वाले-डगलस एंजेलबार्ट
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि माउस के बिना कम्प्यूटर ऑपरेट करना कितना मुश्किल होता? जी हाँ, इसके लिए हमें श्री एंजेलबार्ट का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, जिनकी कोशिशों से हमें आज ऐसी कल्पना करने की भी ज़रूरत नहीं. माउस की मदद से हम कम्प्यूटर से बेहद आसानी से क्रियाओं की ओर संकेत करते हुए परस्पर संचार करते हैं. माउस के आविष्कार से पहले सिर्फ़ कीबोर्ड का इस्तेमाल करते हुए कमांड दर्ज करने पड़ते थे. जबकि आज आपको सिर्फ़ अपने माउस को निर्देश देना होता है और क्लिक करना होता है!5. टिम बर्नर्स ली ने सिर्फ़ दो दशक पहले ही वर्ल्ड वाइड वेब की ईजाद की थी!
जी हाँ, आज से 25 साल पहले WWW का कोई वजूद नहीं था. कम्प्यूटर्स के बीच में सूचना का आदान-प्रदान करने के लिए सन 1960 के दशक में इंटरनेट का आविष्कार हुआ. जबकि टिम बर्नर्स ने फ़ैसला किया कि इसे लोगों के लिए अधिक उपयोगकर्ता योग्य बनाना चाहिए.
अपने एक साक्षात्कार में इस ब्रिटिश कम्प्यूटर वैज्ञानिक ने कहा था कि वेब के लिए इस्तेमाल होने वाली सारी तकनीकें पहले ही विकसित की जा चुकी थीं, मेरा योगदान सिर्फ़ इतना है कि मैंने उन्हें एक साथ जमा कर दिया. कितनी विनम्रता की बात है यह!
हालाँकि आज हम जिस आधुनिक कम्प्यूटर को जानते हैं, उसके लिए कई वैज्ञानिक और कम्प्यूटर इंजीनियर ज़िम्मेदार हैं, लेकिन इन पाँच लोगों की दूरदृष्टि और कड़ी मेहनत ने आधुनिक कम्प्यूटर को संभव बनाया.
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