कई लोग यह मानते हैं कि कोई व्यक्ति तब बहुत तेज़ी से किसी पदार्थ या वस्तु का अर्थ बता सकता है जब वह उसे ज़्यादा से ज़्यादा दोहराता है. सीखने की यह विधि ‘दोहराव या रटने की शिक्षा’ कहलाती है. हैमिल्टन में मैकमास्टर विश्वविद्यालय की स्वास्थ्य विज्ञान शिक्षा की स्नातकोत्तर विद्यार्थी अनीता अकाई कहती हैं, “इसका कोई प्रमाण नहीं है कि याद करने से सीखने की प्रक्रिया बेहतर होती है. यह सीखने का बेहद आसान और त्वरित समाधान है.” [1]
इस तरंग के विपरीत छोर पर है परस्पर संवादात्मक शिक्षण प्रणाली. यह वह तकनीक है जो विद्यार्थियों को पाठ से जुड़ने, परिकल्पना को समझने और उसके बाद उसे अपने दैनिक जीवन में लागू करने के लिए प्रोत्साहित करती है.हालाँकि शिक्षण की इन दोनों ही तकनीकों के लाभ हैं, यह लेख उन रास्तों की थाह जानने की कोशिश करता है कि कैसे रटने की शिक्षण प्रणाली बच्चों के सृजनात्मक कौशल को प्रभावित करती है.
अब सवाल यह है कि रटने की शिक्षण प्रणाली कैसे बच्चों के सृजनात्मक कौशल को प्रभावित करती है?
सृजनात्मकता दरअसल वह योग्यता है जो किसी समस्या या उपाय के लिए एक नए, मौलिक और अनोखे समाधान के साथ सामने आती है. इससे विविधता आधारित वैचारिक प्रक्रिया (अपसारी) क्रियाशील होती है जो कई संभावित समाधानों के आधार पर समस्या का समाधान करती है. इसके विपरीत एककेंद्री आधारित वैचारिक प्रक्रिया (उपसारी) भी होती है, जो समस्या का समाधान केवल एक और सही उत्तर के आधार पर करती है. सारांश यह है कि रटने की शिक्षण प्रक्रिया उपसारी वैचारिकता को प्रोत्साहित करने में विश्वास रखती है. यदि हम इसे सीखने की एकमात्र तकनीक के रूप में स्वीकार करें, तो यह बच्चे के अपसारी वैचारिक कौशल के विकास को अनदेखा करती है. इसके परिणामस्वरूप सृजनात्मक रूप से सीखने की योग्यता में कमी आती है. [2]
स्कूल में, ज़्यादातर प्रोजेक्ट और असाइनमेंट रफ़्तार बढ़ाने पर केंद्रित होते हैं, जिससे बच्चे कुछ समस्याओं का समाधान कर लेते हैं. वे समाधान पर फ़ौरन आने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, बजाए इसके कि समाधान का कोई दूसरा विकल्प (और शायद अधिक सृजनात्मक) तलाशा जाए.
इस तरह से रटने की शिक्षण प्रक्रिया यह साबित करती है कि हर समस्या का एकमात्र ‘सही’ समाधान होता है और ध्यान यह साबित करने पर दिया जाता है कि जल्द से जल्द से प्राप्त उत्तर को सही रूप से स्थापित कर दिया जाए. लंबे समय तक जारी रखने पर यह विद्यार्थियों में संभावनाओं की सीमा तलाशने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करती है और हर समस्या और परिस्थिति से सृजनात्मक रूप से निपटने की उनकी योग्यता को भी कम कर देती है.
इसके अलावा रटने की शिक्षण प्रक्रिया का एक अन्य स्वाभाविक परिणाम यह है कि यह विद्यार्थियों में विषय के प्रति रुचि को खत्म कर देती है. ड्रिल ऐंड किल एक ऐसा वाक्यांश है जिसे शिक्षक किसी विशेष पाठ या सामग्री के संग्रह पर महारत हासिल करने के काम में लाई जाने वाली शिक्षण और प्रशिक्षण विधि का वर्णन करने के लिए उपयोग करते हैं. उदाहरण के लिए:
1.शरीर में स्थित मांसपेशियों या अस्थियों की सूची
2.पहाड़ों की तालिका 3.आवर्ति सारिणी
कई शिक्षाशास्त्री ड्रिल ऐंड किल को ख़ारिज कर देते हैं, क्योंकि यह गहरी, गंभीर और परिकल्पना आधारित शिक्षण प्रक्रिया के मुकाबले याद करने या रट कर सीखने की शिक्षण प्रक्रिया को प्रोत्साहित करती है. इससे भी बढ़कर यह कि यह विद्यार्थियों को सामग्री का निष्क्रिय उपभोक्ता बना देती है, जिसके परिणामस्वरूप वे अरुचि, उदासीनता का शिकार हो जाते हैं और सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि वे कुछ सीखना ही नहीं चाहते. [3]
हालाँकि यह लेख रटने की शिक्षा प्रक्रिया के सृजनात्मकता पर होने वाले प्रभावों की गहराई से जांच-पड़ताल करता है, लेकिन इसके बावजूद यह महासागर में डूबी हुई किसी विशाल हिमशिला का ऊपरी हिस्सा भर है. रटने की शिक्षण प्रक्रिया बच्चों की सृजनात्मक वैचारिकता को प्रभावित करती है, क्योंकि यह ‘समझ’ के मुकाबले केवल ‘जानने’ की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है. आइए, इसे साबित करने लिए नीचे दिया गया वीडियो देखते हैं.
अनुभव साझा करने के लिए किया गया एक सर्वेक्षण यह दिखाता है कि देश भर के स्कूलों के तकरीबन 80% प्रिंसिपल रटने की शिक्षण प्रक्रिया से नाराज़ रहते हैं और उसे ही शिक्षा के निम्न स्तर के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं. अभिभावक के रूप में आपके लिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है कि इस रटने की प्रक्रिया से बच्चों को दूर रखने के लिए आप अपने बच्चों को चर्चा-विमर्श में भाग लेने, ऑनलाइन पाठ सीखने और संवादात्मक माध्यमों से सीखने के लिए प्रोत्साहित करें, क्योंकि ये विधियां रटने की प्रक्रिया के मुकाबले बेहतर साबित होती हैं
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