माता-पिता और शिक्षक ही बच्चे के सबसे महत्त्वपूर्ण सलाहकार और उपदेशक होते हैं.
अक्सर ऐसा होता है कि जब किसी बच्चे का किसी तथ्य से सामना होता है, तो वह उसके जवाब अपने माता-पिता से हासिल करना चाहता है और वह तब तक प्रश्न पूछता रहता है जब तक उसके प्रश्न समाप्त नहीं हो जाते. [1] हालाँकि सलाहकार किसी स्रोत पर निर्भर हो सकते हैं, उनकी अपनी कमियाँ हो सकती हैं. उदाहरण के लिए, माता-पिता सबकुछ नहीं जानते और शिक्षक हमेशा उपलब्ध नहीं होते. इसके अलावा, बच्चों में प्रतिक्रिया प्रणाली उच्च रूप से चयनात्मक हो सकती है. उनमें से ज़्यादातर दृश्य, आवाज़ और रंगों के प्रति प्रभावशाली ढंग से प्रतिक्रिया करते हैं. [2] इससे यह साबित होता है कि हमें अपने बच्चों की सीखने की क्षमता को स्वाभाविक रूप से बढ़ाना चाहिए. ऐसी परिस्थिति में ही एक भरोसेमंद साथी यानी कम्प्यूटर की मदद की ज़रूरत पड़ती है.
“माता-पिता सबकुछ नहीं जानते, जबकि शिक्षक हमेशा उपलब्ध नहीं होते.”
बच्चे बहुत जिज्ञासू होते हैं और सबकुछ जानने की इच्छा रखते हैं. वे दुनिया को अपनी नज़र से खोजना चाहते हैं और वे मौजूदा और अंतहीन संभावनाओं के बारे में सीखना चाहते हैं. कम्प्यूटर की मदद से कोई बच्चा इंटरनेट पर मौजूद विभिन्न प्रकार के शैक्षणिक स्रोतों तक पहुंच सकता है.
इसके अलावा, कम्प्यूटर आपके बच्चे की संज्ञानात्मक यानी ज्ञान से संबंधित योग्यता को विकसित करने में मदद करता है. सन 1993 में हुए अध्ययन के मुताबिक किंडरगार्टन विद्यार्थी जब कम्प्यूटर पर होते हैं, तो उनका 90% ध्यान अपने काम पर होता है.
ऐसे संवादात्मक पाठ जिनमें दृश्य और रंग होते हैं वे बच्चों की समझ और जानकारी आत्मसात करने की उनकी योग्यता को विस्तार देते हैं. साइकोलॉजी टुडे नामक पत्रिका में छपे साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि शैक्षणिक कार्यक्रम बच्चे में समस्या का समाधान करने के कौशल का विकास करते हैं, जबकि मनोरंजक परिकल्पनाओं पर आधारित खेल या गेम्स बच्चे की जानकारी प्रभावशाली ढंग से ग्रहण करने और उसे आत्मसात करने में मदद करते हैं.
कम्प्यूटर के लाभ “द इफ़ेक्टीव यूज़ ऑफ़ कम्प्यूटर्स विद यंग चिलड्रेन” नामक अनुसंधान पेपर में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं, जिसे डगलस एच. क्लेमेंट्स ने प्रकाशित किया था. उसमें वे कहते हैं, “बच्चों द्वारा नए तरीके से कम्प्यूटर का उपयोग करते हुए समस्या का समाधान करने, चित्र बनाने और टर्टल जियोमेट्री करने से उन्हें गणितीय और वैज्ञानिक रूप से समझने और स्वयं को विकसित करने में मदद मिलती है.”
हालाँकि आज कई माता-पिता टैबलेट्स और मोबाइल फ़ोन जैसे अन्य उपकरणों की ओर ज़्यादा झुकते हुए दिखाई दे रहे हैं, लेकिन ये उपकरण बच्चों को उतना तल्लीन नहीं बनाते और न ही उन्हें भीतर तक छूते हैं जितना की पीसी करते हैं. हालाँकि मोबाइल जैसे उपकरण छोटे बच्चों के लिए कुछ हद तक मनोरंजक साबित हो सकते हैं, पर जैसे-जैसे वे भाषा समझने लगते हैं और छोटे-छोटे वाक्य बोलने और लिखने लगते हैं ऐसे में उन्हें पीसी से रू-ब-रू करवाना ही समझदारी वाला काम है. पीसी पठन और लेखन के माध्यम से बच्चे में सीखने की प्रक्रिया में तेज़ी लाता है.
आपके बच्चे का पहला प्राथमिक उपकरण पीसी ही क्यों होना चाहिए, इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि आज के प्रगतिशील तकनीकी युग में पीसी ही सबसे मूल और मूलभूत उपकरण है, जिससे आसानी से सीखा जा सकता है. आज इस नई सहस्राब्दी में जितने भी विकास हुए हैं उनका अग्रदूत और अगुवा यही पीसी है और यही पीसी आने वाले दौर के उस किसी भी उपकरण की बुनियाद होगा, जिसका उपयोग भविष्य में नई पीढ़ी करेगी.
अगर कम्प्यूटर को उसकी अधिकतम सीमा तक बढ़ाया जाए, उसे प्रभावी रूप से इस्तेमाल किया जाए, तो वह आपके बच्चे की वृद्धि और विकास में तेज़ी लाने का पहला कदम हो सकता है. हमारे सामने शुभम का उदाहरण है जो नासिक में रहने वाला माध्यमिक कक्षा का विद्यार्थी है और कम्प्यूटर की वजह से ही उसकी अपनी अकादमिक परिकल्पना पानी की तरह साफ़ और स्पष्ट है.
पीसी के न केवल कई बहुआयामी लाभ हैं, बल्कि यह तो बच्चों की काल्पनिक और वास्तविक दुनिया के बीच की दूरी भी कम कर देता है. यह दूरी कम करने में कभी-कभी माता-पिता और शिक्षक भी कठिनाई महसूस करते हैं. अपने बच्चे के लिए पीसी खरीदना वाकई एक लंबे समय के लिए लिया गया बहुत ही लाभदायक निर्णय माना जाएगा.
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